Jul 14, 2007

मेरे कुछ ख्वाब ऐसे

जिस तरह फूल खुशबू के बगेर बेकार है,
जिस तरह चांदनी, चाँद के बगेर तनहा है, अकेली है,
जिस तरह लहरें सागर के बगेर बेमानी है,
उसी तरह ख्वाब के बगेर, ज़िन्दगी आधी है, अधूरी है |

ज़िन्दगी ख्वाबो का एक सिलसिला है,
कभी यह ख्वाब, कभी वोह ख्वाब,
और जब एक ख्वाब पूरा हो जाए, तो दुसरे ख्वाब की खवाइश |

ज़िन्दगी के साज़ पे छेड़ी एक खुबसूरत ग़ज़ल है ख्वाब,
कुछ सुर में, कुछ बेसुरी, कुछ खुबसूरत, कुछ बदशक्ल |

कुछ ख्वाब ऐसे भी है, जो इन्शां इसलिए देखता है,
क्यों की वो जनता है की वो कभी सच नहीं होंगे,
शायद इसलिए उससे ख्वाब कहते है, जो पूरा हो गया वो ख्वाब कैसा |

मुझे ख्वाबो की आदत है, मैंने भी कुछ ख्वाब देखे, हर दिन, हर पल,
और शायद तमाम उमर देखता रहू,
क्यों की ख्वाब कभी नहीं टूटते, ख्वाब कभी ख़त्म नहीं होते ..

मेरे कुछ ख्वाब ऐसे ...

No comments: